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नमस्कार !
मै रूपाली श्रीवास्तव आपके साथ कई Platform - T.V, Radio, Facebook, Youtube, के माध्यम से जुडी़ रही हूँ । अब मैं आपके समक्ष अपने Thought Article के माध्यम से रखने का प्रयास कर रही हूँ, यदि आप किसी भी विषय पर Article चाहते हैं तो मुझे e-mail या Message के माध्यम से अवगत करा सकते हैं ।
कर्म, भाग्य और वास्तु
जैसा कि आप शीर्षक से समझ गये होंगे कि किस विषय पर अपनी विचार रख रही हुँ, मेरा यह मानना है कि हमारे जीवन में कर्म, भाग्य और वास्तु का सन्तुलन बनाकर चलना हमारे लिये बहुत जरूरी होता है ।
जीवन में कर्म का महत्व सर्वविदित है, मानव का अधिकार केवल कर्म पर है, फल तो कर्म के अनुसार अच्छे कर्म का अच्छा फल एवं बुरे कर्म का बुरा फल प्राप्त होता है । मनुष्य को अपना अच्छा कर्म करना चाहिये । श्री कृष्ण ने गीता में हमें विस्तार से समझाया है, गीता ज्ञान में श्री कृष्ण ने कर्म कर फल की इच्छा न करने को कहा है जो व्यक्ति जीवन में सही दिशा में कर्म करता है । उसके भाग्य का निर्माण स्वतः ही शुरू हो जाता है । कर्म करते रहना जीवन में हमें गतिशील बनाता है । निरन्तर आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है । आधुनिक युग में व्यक्ति कर्म नही करना चाहता लेकिन वो अपना भाग्य प्रबल चाहता है । कर्म और भाग्य एक दूसरे के पूरक होते हैं । कर्म के बिना भाग्य और भाग्य के बिना कर्म दोनो ही निरर्थक हो जाते हैं । जब जीवन में दोनो साथ-साथ चलते हैं तो हम अपने कैरियर, व्यापार में सफलता को प्राप्त करते हैं । जरुरत है- सकारात्मक सोच की सही दिशा जो आपके जीवन में बड़ा परिवर्तन ला सकें हम जो सोचते हैं वो बनते हैं और जो बनते है वो हमारे सही दिशा मे किये गये कर्मों का सकारात्मक प्रभाव होता है । जो भाग्य बनकर हमारे भविष्य को निखारता है संवारता है ।
ऐसे हजारों उदाहरण हमारे समक्ष है जिनके कर्मों ने आज उन्हें दुनिया में एक अलग मुकाम में पहुँचाया है । आज हम किसी भी सफल व्यक्ति को देखते हैं । जो कह उठते हैं, उसका भाग्य अच्छा है । तभी तो वह इतना सफल है । भाग्यशाली है लेकिन भाग्य को बलवान बनाने के लिये उस सफल व्यक्ति ने कितनी मेहनत की है कितना त्याग किया है । उसे नहीं देखते और उसकी मेहनत को नजर अंदाज कर उसके भाग्य को प्रबल है बोल देते हैं । जीवन में अच्छा भाग्य उसी को मिलता है जिसका कर्म अच्छा होता है । अतः अपने भाग्य को प्रबल करने के लिये अच्छे कर्म करें । सही दिशा का चुनाव करें व सही समय पर सही निर्णय लें ताकि भाग्य भी आपका साथ दे ।
अच्छा कार्य करना हमारे हाथ में होता है, भाग्य को कैसे प्रबल किया जाये यह महत्वपूर्ण है, इसके कई माध्यम हो सकते हैं- न्यूमेरोलॉजी ,पूजा-पाठ, राशि रत्न, वास्तु, गुरु का मार्गदर्शन या ज्योतिष परामर्श, कुछ भी हो सकता है । यह हमारे ऊपर निर्भर करता है, कि किस माध्यम को अपनाते हैं किसमे हमारी आस्था है कई बार हमारी सफलता और असफलता इस बात पर भी निर्भर होती है कि हम जहाँ रहते हैं, हमारा घर या हमारा व्यवसायिक स्थल उसका वास्तु कितना सही या खराब है यह भी हमारे जीवन में बहुत बडा़ स्थान रखता है ।
मैं अपनी बात सरल तरीके से समझने के लिये निम्न बिन्दु प्रस्तुत कर रही हूँ -
1. कर्म -
2. भाग्य -
3. वास्तु -
कर्म -
मनुष्य जीवन मिलने का अर्थ है अच्छा कार्य करके अपने पूर्वजन्म के फल भाग्यफल को कम करें या यह कहें कि अपने आत्मबल एवं सहनशक्ति को दीर्घ करके घटाएं । अच्छे कर्मों से इस जन्म का एक तिहाई भाग अच्छा होगा । अच्छे कर्मो से मान-सम्मान, आत्म-संतोष अवश्य मिलेगा ।
मेरा यह मानना है कि हमें काम करने के लिए एक दिन में अधिकतम 24 घण्टे मिलते हैं । सभी लोगों की कोशिश होती है अधिक से अधिक काम करें । जिससे जीवन में उन्नति हो हमें सफलता मिले । एक उदाहरण से आप को समझाने का प्रयास कर रही हुँ- एक चोर जब चोरी करता है वह भी अपना कर्म कर रहा है और एक डॉक्टर जब किसी की जान बचाने का प्रयास करता है वह भी अपना कर्म कर रहा है । लेकिन दोनो उदाहरण में एक व्यक्ति लोगों के लिए अच्छा कर्म कर रहा है दूसरा लोगों को नुकसान पहुँचा रहा है । दोनां के कर्म फल में जमीन आसमान का फर्क आयेगा, इसलिए अपने कर्म करते समय इस बात को ध्यान में रखें, कि किसी को धोखा न दें, किसी का अहित न हो क्योंकि इस तरह से किये गये कर्मां का फल कभी भी अच्छा नहीं हो सकता कर्म करना ही महत्वपूर्ण नहीं होता अच्छे कर्म करना भी आवश्यक है ।
अब यह प्रश्न उठता है कि हम जो कर्म कर रहे हैं, वह सही दिशा मे है या नहीं इसलिये आप कोई भी कार्य करने से पहले यह जरुर आंकलन कर लें कि आप जो भी करने जा रहे हैं, अगर कोई दूसरा व्यक्ति वह कार्य आपके साथ करे तो आपको कैसा प्रतीत होगा । अगर यह तरीका आप अपनाते हैं तो आपको निश्चित तौर पर लाभ होगा ।
मेरा कहना है कि कर्म ही पूजा है, सफलता का कोई शार्टकट नहीं होता है आप पूरी ईमानदारी ,लगन ,इष्टदेव पे आस्था रखते हुये और सभी के लिये अच्छी भावना रखते हुए अपने कर्म करें सफलता अवश्य मिलेगी ।
भाग्य -
भाग्य वह लेखा है जो मनुष्य के द्वारा पूर्वजन्म में किये गये कार्यो के फलस्वरूप अच्छा या बुरा फल भाग्य के रूप में पुनर्जन्म होने पर मिलता है । पुराणों के अनुसार मनुष्य-जन्म अच्छे कर्म करके पिछली गलतियों को सुधारने के लिये मिलता है । भाग्य चूँकि पूर्व में किया गया एक मापदंण्ड है, उसका घटित होना निश्चित होता है । मनुष्य की वर्तमान स्थिति में इसका भाग 33% होता है । यानि एक तिहाई भाग ।
यदि विगत जन्म के कर्म का फल बुरा मिलता है, तो वर्तमान मे अच्छा कर्म करके बुरा को अच्छा में बदला जा सकता है भाग्य में क्या लिखा है, कब क्या घटित होना है, कोई नहीं जानता । ज्योतिष गणना यदि सटीक हुई तो कुछ हद तक जान सकते है ।
भाग्य को बदला तो नही जा सकता लेकिन किसी ज्योतिष या न्यूमेरोलॉजर या अपने गुरु के मार्गदर्शन लेकर भाग्य को सकारात्मक रूप से बढ़ाया जा सकता है इसमें कई उपाय शामिल है । जैसे- स्वयं के द्वारा पुजा-पाठ करना , अपनी कुंडली में स्थित दोषां का निवारण करवाना, अपनी राशि के अनुसार रत्न धारण करना और न्यूमेरोलॉजी के माध्यम से अपने लिये सही अंको का चुनाव करना ऐसे कई उपाय हैं । लेकिन यह आवश्यक है कि उपाय में आपकी पूर्ण आस्था और सही मार्गदर्शन में उपायों को करें । इसका लाभ मिलने की पूरी संभावना है ।
वास्तु -
मनुष्य जीवन को प्रभावित करने वाली तीसरी शक्ति है, वास्तु । वास्तु जहाँ आप रहते हैं, चाहे शहर हो, गाँव हो मोहल्ला हो या मकान हो वास्तुजन्य जमीन पर बने मकान में रहने वाले को सुख-वैभव और उन्नति सब कुछ मिलता है । और घर के वास्तु के कारण ही बुरा नही होता । इसका भार भी एक तिहाई है । इस प्रकार यदि 100 नंबर में आप दो तिहाई नंबर लाते हैं तो बहुत अच्छी जिंदगी जी सकते हैं ।
मान लो आपका भाग्य बिल्कुल खराब है तो उसके एक तिहाई नंबर शुन्य हो गये ।
आपका कर्म बहुत अच्छा है तो उसके एक तिहाई नंबर पूरे मिल गये ।
अब यदि घर का वास्तु ठीक है तो उसके एक तिहाई नंबर भी मिले ।
इस प्रकार आपको यह नंबर मिलने से आप भाग्य के खराब होने पर भी सुखी जीवन जी सकते हैं ।
यह ध्यान दें कि कर्म अच्छा करते रहने से उसका पूरा शुभ फल मिलेगा । यदि कभी कुछ बुरा हो गया तो फल कुछ कम हो जायेगा किंतु एक बार मकान वास्तुरूपेण बना तो उसे जीवन भर, पीढ़ीदर पीढ़ी साथ रहना है और उसका पूरा फल मिलता रहेगा । इसलिये आवश्यकता यह है कि आपका मकान वास्तु के अनुसार ही होना चाहिये । हर संभव प्रयास हो कि कहीं वास्तु त्रुटि न रहे । मकान चूँकि जीवन में एक बार बनता है, इसलिए उसे सोच समझकर बनवायें । प्लाट दिशा अनुसार, ऐसी जगह पर लें जो आपके अनुरूप और वास्तु के अनुरूप हो ।
वास्तु का असर अमीर, गरीब, और हर जाति-धर्म के लोगों पर समान रूप से होता है । भले ही उसे कोई मानें या न मानें । बह्मांडीय ऊर्जा के अस्तित्व को नकारने से उसका प्रतिफल तो बदल नही जायेगा, वह वैसे ही मिलता रहेगा ।
कर्म भाग्य और वास्तु में सबसे आसान वास्तु को संतुलित करना है, और भाग्य को बढ़ाने के लिये सही मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है और आपकी आस्था इस विषय में है कि नहीं, यह भी महत्वपूर्ण होती है और रही बात कर्म की तो वह आप पर ही निर्भर करता है ।
ऊपर लिखे गये विचार पूर्णतः मेरे अनुभव से लिये गये हैं यह आवश्यक नही है कि आप मेरे दृष्टिकोण से सहमत हां लेकिन एक बार विचार अवश्य कीजियेगा ।
कुछ किये बिना तो जय-जयकार नहीं होती
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती ।
प्रभु श्री राम की कृपा आप सभी पर बनी रहे ।
धन्यवाद
रुपाली श्रीवास्तव
सेल न्यूमेरोलॉजिस्ट
एस्ट्रोलॉजर
myview@cellrupali